ट्रेन का सफ़र हमेशा ही कुछ दिलचस्प सा होता है| लाखों लोगों को अपनी गोदी में बैठा कर एक छोटे बच्चे की तरह इस ट्रेन ने हमेशा ही हमें अपनों से करीब करवाया है| लोग भले ही अनजाने हों और गिनती में कई सारे पर उनके बीच बातों का एक ऐसा पुल बंध जाता है जो हमेशा ही किसी फ़िल्मी कहानी सा प्रतीत होता है| जैसे की हर फ़िल्मी कहानी में एक हीरो, एक हेरोइन और एक विल्लैन होता है तथा हीरो हेरोइन को आखिर में ले उड़ता है वैसे ही इस कहानी की पटकथा भी जाने पहचाने मोड़ लेती है| यह सारा वार्तालाप एक बहती नदी के बहाव सा होता है जिसका रुख सिर्फ एकतरफा होता है| जब कोई दो मुसाफिर आमने सामने हों और उनके बीच वार्तालाप किसी विषय का मोहताज हो तो सबसे पहले मौसम की बातें की जाती हैं|
हर व्यक्ति यहाँ मौसम का जानकार होता है | "भाईसाहब मौसम काफी ख़राब हो रहा है?", "फलाना जगह का मौसम कैसा है भाईसाहब?", "आज लगता है बारिश आएगी!", अगर इस से भी बातें नहीं चालू हो पाती तो फिर ब्रह्मास्त्र छोड़ा जाता है| भाईसाहब आप "कहाँ तक जा रहे हैं?", "ये फलाना स्टेशन कितने बजे आएगा?” या "क्या फलाना स्टेशन पर ट्रेन रुकेगी जनाब?"| इनके जवाब और भी अजीब और हास्यात्मक होते हैं जैसे "साहब ये फलाना स्टेशन लगभग ११..साढ़े ११..या १२ तक तो आ ही जाएगा| अब कौन उन्हें समझाए की क्या भैया एक घंटे तक स्टेशन आता ही रहेगा? कम से कम एक समय तो बोलो आप| हर जगह तुक्का मारने की आदत है सबकी, भले ही किसी विषय पर हम नहीं जानते हो पर ट्रेन में हर आदमी तुर्रम खां से कम नहीं होता|
हर व्यक्ति यहाँ मौसम का जानकार होता है | "भाईसाहब मौसम काफी ख़राब हो रहा है?", "फलाना जगह का मौसम कैसा है भाईसाहब?", "आज लगता है बारिश आएगी!", अगर इस से भी बातें नहीं चालू हो पाती तो फिर ब्रह्मास्त्र छोड़ा जाता है| भाईसाहब आप "कहाँ तक जा रहे हैं?", "ये फलाना स्टेशन कितने बजे आएगा?” या "क्या फलाना स्टेशन पर ट्रेन रुकेगी जनाब?"| इनके जवाब और भी अजीब और हास्यात्मक होते हैं जैसे "साहब ये फलाना स्टेशन लगभग ११..साढ़े ११..या १२ तक तो आ ही जाएगा| अब कौन उन्हें समझाए की क्या भैया एक घंटे तक स्टेशन आता ही रहेगा? कम से कम एक समय तो बोलो आप| हर जगह तुक्का मारने की आदत है सबकी, भले ही किसी विषय पर हम नहीं जानते हो पर ट्रेन में हर आदमी तुर्रम खां से कम नहीं होता|
अगर विषय राजनीती का हो तो फिर तो हर नए स्टेशन पर एक दो महारथी अपने ज्ञान के पिटारे को खोलने के लिए चढ़ जायेंगे| ये ज्ञान की इतनी अधिक मात्र का छिडकाव करते हैं की एक भव्य सभा सी चालू हो जाती है और हर व्यक्ति वहां अपने आप को सिद्ध करने को आतुर रहता है| ज्ञान की ऐसी होड़ लगी होती है की इस में कहीं कोई सिस्टम को गाली देने में जुटे होता है तो कहीं कोई भारत के बारे में बातों में लगा होता है, जहाँ उसे विदेशों की तुलना में खरी खोटी सुनाई जा रही होती है| उसको इतना बेईज्ज़त किया जाता है की भारत भी सोचता होगा कहाँ अँगरेज़ छोड़ गए मुझे, इतना नंगा तो मुझे उन्होंने भी नहीं किया था जितना मेरे ही सपूत मुझे कर रहे हैं| छोटे बचे के चिल्लाने की आवाज़ से सारा वातावरण एक भीड़-भाड़ वाले शहरी चौराहे सा प्रतीत होता है| किन्नर भी न जाने क्यूँ पैसे मांगने आ जाते हैं, अब क्या ट्रेन में भी कोई ख़ुशी जन्म ले रही होती है? पर उनसे लड़ने की हिम्मत तो पुलिस में भी नहीं तो फिर सीधे-साधे नागरिक मायूस हो दस बीस रूपये ढीले कर ही देते हैं| भिकारी, गाने वाले और सामान बेचते लोग भी इस यात्रा को परेशानी का पर्यायवाची बना देते हैं| हर दो मिनट में " जनाब जगह बनाएं !" का नारा लगा होता है| इस सब से काफी झुनझुनाहट तो होती है पर ट्रेन तो सबकी है महाराज, किसे रोकेंगे आप?
अगर कोई कॉलेज का छात्र सफ़र पर हो तो कुछ बातें स्वतः ही समझी जा सकती है| उसकी बिखरी हालत से समझा जा सकता है की यह आखरी वक्त पर सामान डाल कर आया है और जो भटका हुआ चेहरा वो लाया होता है वो ये बता रहा होता है की उसने आखिरी कुछ पालो में ट्रेन पकड़ी है| उसकी टटोलती आखें बता रही होती हैं की वो लड़कपन में आरक्षण चार्ट का पूरा ब्यौरा ले आया है जिसमें वो यही ढून्ढ रहा था की आस पास की सीट पर कोई १८-२५ वर्षीय बाला मिल जाये तो सफ़र हराभरा हो जाये| जब कोई नहीं मिलता तो वह मन मसोस के इसी में संतुष्टि कर लेता है की जब डिब्बे का भ्रमण करूँगा तभी शायद कुछ काम बन जाए| टी टी से छुप के सिगेरेट मार लेने में लोग अपने आप को ट्रेन का राजा मन लेते हैं और अगर यह भी कम हो तो बगल में रखी बोतल से दो घूँट भी लगा लिए जाते हैं| उपन्यास पढना या कानों में गाने सुनने की मशीन ठूस लेना एक आम बात है पर ट्रेन में आपकी माचोगिरी से लोग इतना तो समझ ही जाते हैं की जनाब हैं काफी पढ़े लिखे या फिर फैशन परस्त| कहीं पर तिरछी निगाहों से लड़कियां ताड़ी जा रही होती हैं तो कहीं छुप छुप कर रसीली किताबें पढ़ी जा रही होती हैं| अब रसीली किताबों से मेरा क्या तात्पर्य है वह तो आप खुद ही समझ गए होगे क्यूंकि कहते हैं ना समझदार को तो इशारा ही काफी होता है|
चाय का असली मज़ा या तो बारिश में भीगे होने पर आता है या फिर ट्रेन की ठिठुरती सर्दी में| जब खिड़कियाँ बंद कर देने के बावजूद भी कम्भख्त हवा एक छोटे से छिद्र के सहारे अन्दर का रास्ता खोज लेती है और हमारे बदन के साथ अटखेलियाँ करने लगती है तब हवा से लुका छुपी का खेल चालू होता है जिसमें अमूमन जीतते जीतते सारी रात कम पड़ जाती है और जब हम उस पर विजय पाने ही वाले होते हैं तो सुबह हो जाती है| अगर ट्रेन में मल निष्काषित करने का कम हो तो फिर तो हम भारी मुसीबत में आ जाते हैं| ठंडा पानी उसपर गन्दी बदबूदार जगह, पर जो मुसीबत सामने खड़ी है उसका सामना तो करना ही पड़ेगा ना| वैसे भी किसी ने सच ही कहा है "कर्म करते चलो और ज्यादा सोचो मत"| मैं जानता हूँ कहावत में हल्का सा फेर बदल है पर अब मुसीबत ही ऐसी है की आती है तो फिर जाती नहीं वापस|
कई बार यह सफ़र यादों के अनजाने शहर में भटकते मुसाफिर सा होता है या फिर कई बार इन यादों की ऐसी अमिट छाप दिल पर रह जाती है की ज़िन्दगी भर ये यादें सताती हैं| कई रोमांस से भरी कहानियां इन्ही जगहों से शुरू होती हैं और मिसाल बन जाती हैं तो कई यहीं दम तोड़ देती हैं| कई लोग यहाँ अनजान सफ़र पर मिले मुसाफिर से हमसफ़र भी बन जाते हैं| इस सब में उसी छोटे से बदबूदार कोने का बड़ा हाथ होता है, जनाब छोटा है पर बड़े काम की चीज़ है| यहाँ अनेक अठकेलियाँ होती हैं तो कई नयी दास्तानें जन्म लेती हैं| वैसे भी किसी कॉलेज स्टुडेंट की प्रेम की किताब में तो कॉलेज जाने से पहले ही कई पन्ने भर जाते हैं| उसके जीवन में तो रोमांस की क्लास, कॉलेज जाने से पहले ही लग जाती है और हमेशा उसमें अव्वल रहने की होड़ सी होती है|
ट्रेन का सफ़र हमेशा ही कुछ अन्जाना सा कुछ जाना पहचाना सा होता है बिलकुल हमारे जीवन सा, जहाँ हम सब मुसाफिर हैं और अपने अपने गंतव्य के इंतजार में यात्रा का मज़ा लेते हुए आगे बढ़ते जाते हैं| जिनका स्टेशन आ जाता है वो पाकिस्तान की जेल से छूटे भारतीय सैनिक सा होता है और उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं होता पर जिनका स्टेशन नहीं आया वो इंतजार में घड़ियाँ गिनते रहते हैं| हर एक नया मुसाफिर अपने साथ एक नयी कहानी लाता है और कई नयी कहानियां बटोर के अपने गंतव्य पर उतर जाता है| हम सब इस दुनिया में एक किरदार के सामान हैं और यह दुनिया रंगमंच| किरदार आते हैं और चले जाते हैं पर रंगमंच से बड़ा कोई नहीं होता| वो कहते हैं ना अंग्रेज़ी में :
“The show must go on..."
poora pro type ka lag rha hai....nostalgic...saras bharti....
ReplyDeletePHODA OYEE :O :O :O bc ye har bande ki kahani hai be :D :D i loved dat part woh 18-24yrs wali bandi srsly saala har koi yahi karta hai n koi NAA kahe to jhuta mc :D :D keep it up chore tu to professional hote jaara hai :) :) kahan chupa baitha tha mere bhai :) :)
ReplyDeleteabe yaar achcha varnan tha is safar ka. Har koi bandha isko sochega ki ye mera kahani hai.
ReplyDeleteAchcha banaya yaar.
Par thoo bahut formal baasha isthamaal kar ahe ho yaar. Isliye tho bahut lamba laga mujhe.
Jo bhi ho jab mein vimaan mein jaana shuroo karoonga thab yeh post mujhe bahut nostalgic lagega..... :P
यार मेरी मान नौकरी छोड़ ट्रेन में सफर करना शुरू कर यही तेरा भविष्य है....
ReplyDeletepadhte hue aisa laga, aap meri aankhon se dekh rahe ho ya phir me apna dekha hi aapki aankhon se dekh raha hun. umr choti sahi, abhivyakti badi hai. badhai, likhte raho!
ReplyDeletesahi mein saras bharti ki yaad aa gayi
ReplyDeletenice one!!
Ultimate. I dont have words to describe my feelings. Such a hold on vocab as such a small age. Mind blowing bhai.
ReplyDeleteShraddha